शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020

अर्द्धदेव Demigod , गौडीय वैष्णव, Iskcon, राधारानी जी

Demigod का प्रयोग शास्त्रों तथा परंपराओं अथवा लोकाचार में कहीं नहीं है। इस शब्द का संस्कृत अथवा हिन्दी में अनुवाद तो अर्द्धदेव हुआ। महादेव शंकर  भगवान विष्णु भगवान के भक्त हैं और नारायण भगवान स्वयं भक्त हैं शिवशम्भूनाथ के,‌ हरि एवं हर परस्पर पूरक हैं। शिवपुराण, विष्णुपुराण, स्कन्दपुराण सभी में ऐसा कहा है। 

गौडीय वैष्णव सम्प्रदाय, निम्बार्काचार्य आदि के मतों के अनुसार भगवान कृष्ण परमेश्वर प्रभु हैं, मात्र अवतार नहीं विष्णु भगवान के। किन्तु Iskcon द्वारा गठित demigod अर्द्धदेव समास का देवी-देवताओं के लिये प्रयोग का कोई सनातन प्रमाण अथवा आर्ष मान्यता नहीं है। Demigod का प्रयोग हेलेनिक वा ग्रीकोरोमन मान्यताओं में मिलता है जहाँ वे देवता तथा मनुष्य के मिलाकर अंश होते थे/हैं, अर्थात् देवत्व से निम्न स्थिति।

 Iskcon का उद्भव एक प्रकार से पश्चिम में ही हुआ और अंग्रेजी लेखन में वहाँ समस्या यह आयी कि उनकी पीढ़ियों की अब्रह्मिक सोच में देवताओं का तो कोई अस्तित्व ही नहीं तो संस्कृत / बांग्ला का अंग्रेजी रूपांतर करने के लिये उन्होंने सहस्रों वर्षों पहले अब्रह्मिक उन्मादियों द्वारा नष्ट कर दिये गये हेलेनिक वा ग्रीकोरोमन सिद्धांतों का उपयोग कर दिया। भारतवर्ष में भी Iskcon के  Ramakrishna Mission के समान सभी प्रकाशन लगभग सर्वथा अंग्रेजी में ही होते हैं तत्पश्चात् आवश्यकताऽनुसार भारतीय भाषाओं में अनुवाद उनके द्वारा किया जा सकता है।  

राधा जी का महत्व भगवान कृष्ण से भी अधिक महत्व उपरोक्त मात्र दो वैष्णव सम्प्रदायों- निम्बार्क एवं गौडीय में है क्रमशः बृज एवं वंग में केन्द्रित हैं। ८०० वर्षों पूर्व जयदेव गोस्वामी के लेखनों से मनोहारी प्रभु  बालकृष्ण तथा राधारानी जी की लोकप्रियता एवं महत्ता बहुत बढ़ी। पहले योद्धा कृष्ण भगवान की मान्यता थी जिसमें कमी तो आयी है। 
गंधर्व तो देवताओं की एक कोटि है। इसमें कोई संदेह नहीं। 

(वैष्णव सम्प्रदाय ४ होते हैं- 
(कॉपी पेस्ट) 
(१) श्री सम्प्रदाय जिसकी आद्य प्रवरर्तिका विष्णुपत्नी महालक्ष्मीदेवी और प्रमुख आचार्य रामानुजाचार्य हुए। जो वर्तमान में रामानुजसम्प्रदाय के नाम से जाना जाता है।

(२) ब्रह्म सम्प्रदाय जिसके आद्य प्रवर्तक चतुरानन ब्रह्मादेव और प्रमुख आचार्य माधवाचार्य हुए। जो वर्तमान में माध्वसम्प्रदाय के नाम से जाना जाता है।

(३) रुद्र सम्प्रदाय जिसके आद्य प्रवर्तक देवादिदेव महादेव और प्रमुख आचार्य वल्लभाचार्य हुए जो वर्तमान में वल्लभसम्प्रदाय के नाम से जाना जाता है।

(४) कुमार संप्रदाय जिसके आद्य प्रवर्तक सनतकुमार गण और प्रमुख आचार्य निम्बार्काचार्य हुए जो वर्तमान में निम्बार्कसम्प्रदाय के नाम से जाना जाता है।

इसके अतिरिक्त मध्यकालीन उत्तरभारत में ब्रह्म(माध्व) संप्रदाय के अंतर्गत ब्रह्ममाध्वगौड़ेश्वर(गौड़ीय) संप्रदाय जिसके प्रवर्तक आचार्य श्रीमन्महाप्रभु चैतन्यदेव हुए और श्री(रामानुज) संप्रदाय के अंतर्गत रामानंदी संप्रदाय जिसके प्रवर्तक आचार्य श्रीरामानंदाचार्य हुए ।) 

रामानंदाचार्य जी का व्यापक प्रभाव रहा जो लगभग कोई नहीं जानता अब कि किसी ना‌ किसी रूप में गोस्वामी तुलसीदास, कबीरदास, रहीमखान, गुरु नानक, संत रविदास इन सभी के गुरु अथवा प्रेरक रहे अर्थात् मध्ययुगीन साधु संतों में भारतवर्ष पर सबसे अधिक प्रभाव संत रामानंदाचार्य स्वामी का रहा है। 

Yes, acc to western thought process. But the West we see now is not a religious or cultural successor of Hellenic or Greco-Roman or Egyptian civilisation. The west is abrahamic, Judeo-Christian.



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