शुक्रवार, 15 मई 2020

सनातन भारतीय भोजन और व्यञ्जनों के विदेशी/विधर्मी मूल का मिथ्या भ्रामक दुष्प्रचार

अभी कहीं मिथ्या लेख देखा कि बाटी को भाप देकर बाफला बनाने की विधा मुगलों ने सिखायी। 
भाई मुगल मध्य एशिया से आये थे, अफगानिस्तान होते हुए। दोनों ही स्थानों पर कोई भी भाप किया हुआ पारंपरिक व्यंजन आज भी  नहीं है। वहाँ ऐसी वस्तुएं अधिकांश तंदूर में बनाई जाती हैं। मध्य एवं पश्चिम राजस्थान जल सघन राज्य तो है नहीं इसीलिये पारंपरिक रूप से बाफला मालवा में और आंशिक रूप से लगे हुए हाड़ौती/मेवाड़ में बनाया जाता है। भाप किये भोजन पूर्वांचल (पूर्व उप्र, बिहार), बंगाल ओडिशा असम एवं दक्षिण भारत में सहस्राब्दियों से बनाये जाते हैं। मालवा सम्राट विक्रमादित्य के समय से ही लघु भारत था जहाँ सभी क्षेत्रों के लोग आवागमन/निवास करते थे, वहीं यह बाफला आरंभ हुआ था। 

मुगलों और बाफला से ध्यान आया कि केरल में आजकल प्रोपेगैंडा है कि इडली डोसा वहाँ अरब लाये थे, अरे इतिहास से आज तक अरब में धान की खेती नहीं हुई, उड़द दाल उगती नहीं और पानी नहीं अरब में किन्तु इडली डोसा का श्रेय अरबों को! 
ऐसे ही बकवास है कि बिरयानी/पुलाव मुगल लाये थे। अरे भैया मध्य एशिया में घोड़ों पर रहने वाले घुमंतू जहाँ आज भी चावल नहीं उगता, मसाले तो भारत और द•पू• एशिया के बाहर कहीं कभी हुए नहीं तो वे मुगल हमारी प्राचीन सभ्यता संस्कृति को जो चावल और मसाले की जन्मभूमि हैं, हमें चावल बनाना सिखायेंगे, अति है झूठ बोलने की! ईरान/फारस में जहाँ से संस्कृति सीखते थे मुगल कहाँ आज भी बिरयानी में चावल ही नहीं पड़ता, वह मैदे की रोटी और माँस से बनती है। 

और निर्लज्ज झूठ कि पनीर अंगरेजों ने सिखाया! पृथ्वी पर जहाँ सबसे पहिले गौमाता ने मनुष्य को दूध दिया, वहाँ हम दही, खोआ, छेना बना खा रहे हैं किन्तु पनीर अलग से हमें असभ्य लोग बनाना सिखायेंगे जहाँ मात्र ५०० वर्ष पहले वे अंधकार युग में स्वयं जी रहे थे! 

पुलाक मूल व्यंजन है चावल का जो ऋग्वेद, चरक और याज्ञवल्क्य संहिता में बताया गया है, जिसे विदेशी पुलाव कहने लगे। पुलाव, इडली, बाफला आदि सभी भारतीय व्यञ्जनों की विधा पाकशास्त्र की प्राचीन पुस्तकों रसमञ्जरी, मानसोल्लास आदि में भी विस्तार से मिलता है। फारस/ईरान में पोलो ही कहते हैं आज भी जो पुलाक से निकला है। बिरयानी का मूल अर्थ फारसी में है भुना मांस जो ईरान में रोटले के साथ बनता है। 

मध्य एशिया के तुर्का मुगल जिनकी राजभाषा तथा उधार की किंतु फारसी थी वे पुलाव में भुना माँस मिलाने लगे तो बिरयानी कहने लगे। आइने अकबरी में भी लिखा है कि सल्तनतों के पहले भी भारत में पुलाव बिरयानी खाये जाते थे जिनके भारतीय नाम.थे। और असत्य कथन चल पड़ा कि पुलाव और बिरयानी मुगल लाये थे। 

अब देखिये कि मूढ़ फिरंगी आज भी पूड़ी, रोटी, कचौड़ी सभी को इण्डियन ब्रेड ही कहते हैं तो चूंकि ब्रेड विदेशी शब्द है तो पूड़ी कचौडी आदि क्या अंग्रेजों ने हमको सिखाया?? ठीक वैसे ही हास्यास्पद है भारतीय भोजन की खोज का श्रेय मुगलों को देना। 

आप सभी को तो बचपन का वह.मूर्ख पाठ स्मरणहोगा कि भारत की खोज किसने की- 'वास्कोडिगामा ने'। अरे मंदबुद्धियों को यह.नहीं पता कि भारतवर्ष ७००० वर्षों पुरानी सभ्यता है जिसको लूटने के उद्देश्य से अलक्षेन्द्र अयोनिया , यूरोप, से २३०० वर्ष पहले ही आ चुका था, फिर रोमन साम्राज्य से भारत के सदियों तक.समुद्र मार्ग से व्यापार व राजनयिक संबंध थे जिनके असंख्य पुरातात्विक प्रमाण हैं तो गधे वास्को ने कैसे भारत.अथवा भारत के समुद्री मार्ग की खोज की?! 

भारतवर्ष और सनातन धर्म सभ्यता संस्कृति को नीचा दिखाने की हर कुत्सित निकृष्ट घृणित कुकृत्य का खण्डन करें और ऐसे दुर्भावनापूर्ण, दुराग्रह ग्रसित दुष्प्रचार से बचें। 

समय देने हेतु आभार, 
सविनय धन्यवाद 🙏😊

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