मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

सती प्रथा

सती प्रथा नहीं होती थी ऐसा नहीं है किन्तु अपवादस्वरूप ही होती थी वैदिक काल में। यह हमारे पश्चिमोत्तर सीमान्त क्षत्रियों में यदा-कदा देखी गयी थी। अन्य वर्णों तथा अन्य क्षत्रियों में प्रचलन नहीं था। अतः माद्री ने सती किया किन्तु कुन्ती ने नहीं। सती शब्द तो देवी माता सती से ही आया है जो अपने पिता प्रजापति दक्ष जी के हवन कुण्ड में अग्नि में लीन हो गयीं थीं अपने पति के सम्मान हेतु। सल्तनत आक्रांताओं के समय में जब जीतने की संभावना नहीं रहती थी तो पुरुष साका करते थे और चूंकि वे लौट कर नहीं आयेंगे तो महिलाएं जौहर करतीं थीं। वह सती प्रथा नहीं था। जो कि तब भी अपवाद ही था‌। एक आध सती जो राजपूताना में देखे गये वह इतने अप्रत्याशित थे कि लोगों ने वहाँ विस्मय और श्रद्धा से मंदिर बनवा दिया। सती प्रथा का बढ़ा चढ़ा कर आरोप अंग्रेजों ने बंगाल में लगाया, वहाँ शेष भारत से कुछ अधिक थी सती प्रथा किन्तु स्वैच्छिक नगण्य थी। वहाँ आज से ८०० वर्ष पूर्व दायभाग नियम परिवार संचालन में जिमूतिवाहन ने आरंभ किया जिसमें शेष भारत में प्रयुक्त मिताक्षरा की तुलना में विधवाओं को पति की संपत्ति में अधिकार अधिक सुनिश्चित किये गये। तो वहाँ कतिपय ईर्ष्यालु परिवारों में लोभ तथा दुर्भावनावश नयी विधवाओं को बलात् सती किया गया जिसका विदेशी लोगों ने बढ़ा चढ़ाकर दुष्प्रचार किया। १८३९ में पंजाब महाराज रणजीत सिंह की पत्नियों ने भी स्त्री किया था, वह भी सैकड़ों वर्षों में राजपरिवार में अपवाद था। 
अब रही शास्त्रों की बात तो किसी भी स्मृति अथवा सूत्र में कहीं भी सती की अनुशंसा नहीं है।

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